Friday 22 August 2014

हम भारतीयों का "मुझे क्या" और "चलता है" रवैया

प्रिये मित्रो,

हाल ही में हुए, DRDO के एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा ही इस रक्षा संस्थान का "चलता है" स्वभाव अब नहीं चलेगा। यह पढ़ कर मुझे लगा की भारत में यह "चलता है" या "मुझे क्या" रवैया तो रोज मरह की जिंदगी में भी देखा जा सकता है। दो दिन पहले, एक ड्राइवर सड़क पर उलटी साइड गाढ़ी चला रहा था। मैंने पूछा "भाई, तुम उलटी साइड गाड़ी क्यों चला रहे हो? बाहर के देशो में इस बात पर चालान कट जाता है और लाइसेंस भी रद हो सकता है। वो बोला "इंडिया में सब चलता है। और गाडियों को देखो वो भी ऐसा ही कर रही है। मैं ये सुन कर बड़ा हैरान हुआ। क्यूंकि और लोग भी ऐसा कर रहे है तो हम को भी ऐसा करना चाहिए। जब यही लोग अमेरिका, फ्रांस या इंग्लैंड जाते हैं, तब वो कायदे से सड़क के नियमो का पालन करते हैं। चाहे वो बस के लिए लाइन में खड़ा होना हो, सड़क पर कूड़ा डालना या खुले में पेशाब करना। आम भारतीय यही बोलता है की "मुझे क्या! मुझे बस में पहले चढ़ना है चाहे मुझे धक्का मुक्की क्यों न करनी पढ़े", "मुझे क्या अगर सड़क गन्दी होती है", "चलता है! सड़क पर पेशाब करना चलता है"। और यह बोलकर वो फिर बाद में शिकायत करते हैं की इंडिया बहुत गन्दा है। इससे अच्छा तो विदेश है। 

इसी तरह जब कोई भ्रष्टाचार की बात करता है तो वो यही कहता है की 
नेता और सरकारी संस्थान बहुत भ्रष्ट हैं। अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल के भ्रष्टाचार की जंग भी इन्ही संस्थानों के खिलाफ थी। पर यह लोग और प्रत्रकार ये बताना भूल गए की अगर पैसे खाने वाला भ्रष्ट है तो उतना ही पैसे देने वाला। आम जनता में कितने लोग बिना बिल के सामान खरीदते है। ये करना काल धन बढ़ता है। कितने लोग राशन कार्ड, ड्राइवर लाइसेंस, पासपोर्ट, इत्यादि बनवाने के लिए ऊपर से पैसे अफ़्सरो को देते है। क्या ये लोग भ्रष्ट नहीं है। "मुझे क्या बस राशन कार्ड बनना चाहिए जल्दी से जल्दी और बिना कोई मेंहनत किये।" अगर भ्रष्टाचार हटाना है तो लोगो को बिना पैसे दिए, सारी औपचारिकता पूरी करके आपने काम करवाना चाहिए। अगर कोई पैसे खिलाने वाला ही नहीं होगो तो लेने वाला कहा से मांगने वाला कहा से होगा। अगर ईमानदार नेता चाहिए तो मतदाता को सभी उमीदवारो के बारे में पढ़ कर जाना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता की जहा एक सीट के लिए १०० से भी ज्यादा उमीदवार हो, वह एक भी ईमानदार उमीदवार नहीं खड़ा हुआ हो। पर लोगो के पास इन सब चीज़ो के लिए या तो टाइम नहीं है या उनको फरक नहीं पड़ता। कई लोग तो मतदान डालने ही नहीं जाते। फिर इन्ही लोगो को ये नहीं चिल्लाना चाहिए की इंडिया में करप्शन बहुत बढ़ है। 

पिछले एक दशक नजाने कितने करोड़ रुपये गंगा यमुना जैसी नदियों को साफ़ करने में बह गए। क्या यह आम लोगो की जिम्मेदारी नहीं है की इन नदियों में कुढ़ा न डाले। मगर लोग फिर भी डालते है। पत्ते, फूल
डालने से तो फिर भी ज्यादा प्रदुषण नहीं होतो, पर लोग प्लास्टिक, साबुन का पानी इत्यादि तक उसी गंगा में डालते है जिसकी वो पूजा करते हैं। अगर यह सब डालना पूजा है तो अपमान क्या है। सड़क पर बाइक चलते हुए अगर कोई ट्रिप्लेट करता है या हेलमेट नहीं पहनता तो वो नियमो का उलंघन ही नहीं, अपनी जान को भी संकट में डालता है।  पर "मुझे क्या", "सब चलता है"। अगर एक अरब आबादी के इस देश में लोग चाहे तो भारत को स्वच्छ, भ्रस्टाचार मुक्त समृद्ध देश बनाया जा सकता है। 

धन्यवाद
अयान 

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